आज के इस लेख में सुपरथर्टी एक ऐसी हकीकत पर आपका ध्यान दिलाना चाहता है कि Govt. School Books vs Private School Books में क्या अंतर है। क्या आप जानते हैं कि एक ही क्लास की किताबें KV या सराकरी स्कूल में लगभग ₹600 में मिल जाती हैं, जबकि भारत के कई प्राइवेट स्कूलों में वही किताबें ₹4500 में मिलती हैं? आखिर यह लूट नहीं तो क्या है? प्राइवेट स्कूलों की यह मनमानी आखिर कब तक चलेगी?
शिक्षा या धंधा?
भारत में पहले के जमाने में जब बच्चे गुरुकुल में जाते थे, तो उस समय किसी भी माता-पिता पर बच्चों की पढ़ाई का बोझ नहीं होता था। लेकिन आज के समय में, जब बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, तो बहुत से माता-पिता पर किताबों और उनकी फीस का बहुत तगड़ा बोझ पड़ता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई, उनकी फीस देने तथा किताबें खरीदने के लिए लोन तक लेना पड़ता है। आखिर यह बोझ निजी स्कूल वाले माता-पिता पर क्यों डाल रहे हैं? कहीं यह एक लूट वाला कारोबार तो नहीं बन गया है? अब आप ही सोचिए और कमेंट बॉक्स में बताइए कि क्या यह शिक्षा है या फिर कोई धंधा?
किताबों का कारोबार
दिल्ली और भारत के निजी स्कूलों की हकीकत
शिक्षा हमारे समाज की बुनियादी चीज है और इस पर सभी बच्चों का हक है। लेकिन जब शिक्षा एक व्यवसाय (Business) का रूप ले लेती है, तो इसका असर सबसे पहले बच्चों और उनके माता-पिता पर देखने को मिलता है। हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर अखबार में छपी थी। जब हमारी टीम ने उसे पढ़ा, तो हमने इस पर रिसर्च किया। फिर सोचा कि आपके सामने अपनी तुलना रखी जाए, जो इस ब्लॉग के माध्यम से नीचे दी जा रही है।
क्या आपने कभी केंद्रीय विद्यालयों (KVs) या सरकारी स्कूल और दिल्ली सहित देशभर के निजी स्कूलों की किताबों की कीमतों में जमीन-आसमान का फर्क देखा है या सुना है? अगर नहीं, तो हमारी यह तुलना ज़रूर जानिए।
₹600 बनाम ₹4500: एक नर्सरी छात्र की किताबों का फर्क
क्या आपके बच्चे केंद्रीय विद्यालयों और सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हैं या फिर किसी निजी स्कूल में? यदि वे किसी निजी स्कूल में पढ़ते हैं, तो आपको अवश्य पता होगा कि आपके बच्चों की किताबें कितने रुपये में स्कूल से मिली हैं। लेकिन यदि आपके आस-पास कोई माता-पिता हैं जो आपके दोस्त हैं और उनके बच्चे किसी केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते हैं, तो एक बार उनसे किताबों के रेट ज़रूर पूछिए। आपको हकीकत पता चल जाएगी कि किताबों के रेट में कितना बड़ा फर्क है।
आज दिल्ली और भारत के अन्य शहरों में संचालित केंद्रीय विद्यालयों में नर्सरी से कक्षा 5वीं तक की किताबों की कीमत लगभग ₹600 से ₹700 रुपये है। वहीं, देशभर के कई निजी स्कूलों में यही किताबें ₹2500 से ₹4500 तक में बिक रही हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि शायद किताबों के स्टैंडर्ड में फर्क होगा। नहीं, ऐसा नहीं है। अगर ऐसा होता, तो आज भी देश के कई प्रतियोगी परीक्षाएं क्रैक करने के लिए NCERT की किताबें पढ़ने की सलाह क्यों दी जाती?
आज भी देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा UPSC सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले छात्र NCERT की किताबें ही पढ़ते हैं।
अब आप सोचिए — कहीं ये निजी स्कूल वाले किताबों का कोई धंधा तो नहीं कर रहे हैं?
क्यों महंगी हैं निजी स्कूलों की किताबें?
निजी स्कूलों की किताबें महंगी होने का मुख्य कारण है — स्कूल संचालकों द्वारा लिए जाने वाला भारी कमीशन का खेल। आज बहुत से निजी स्कूल एनसीईआरटी (NCERT) की किताबों को नजरअंदाज कर, निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें बच्चों को खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं।
जबकि केंद्रीय विद्यालय और सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए एनसीईआरटी की किताबों का ही उपयोग किया जाता है। ये किताबें न केवल सस्ती होती हैं, बल्कि गुणवत्ता में भी प्रमाणिक होती हैं।
कक्षा अनुसार कीमतों की तुलना
कक्षा | निजी प्रकाशकों की किताबें | एनसीईआरटी की किताबें |
---|---|---|
नर्सरी से कक्षा 5 तक | ₹2500 से ₹4500 | ₹600 से ₹700 |
कक्षा 6 से 8वीं तक | ₹4500 से ₹9000 | ₹800 से ₹900 |
कक्षा 9वीं व 10वीं | ₹6000 से ₹9500 | ₹900 से ₹1000 |
कक्षा 11वीं व 12वीं | ₹6000 से ₹10000 | ₹1100 से ₹1250 |
आप ऊपर दी गई कक्षा अनुसार किताबों की कीमतों की तुलना को अवश्य देखें और अपने आस-पास के लोगों से इस विषय में बात करें। फिर आपको खुद समझ में आ जाएगा कि वाकई में बहुत से निजी स्कूल वालों ने किताबों को बेचने का एक धंधा खोल रखा है।
कौन उठा रहा है फायदा?
दिल्ली और भारत के बहुत से नामी निजी स्कूलों में यह देखा गया है कि पाठ्यक्रम में दिखावे के नाम पर कुछ एनसीईआरटी किताबें शामिल तो कर ली जाती हैं, लेकिन पढ़ाई के लिए बच्चों को महंगे निजी प्रकाशकों की किताबें ही थमा दी जाती हैं, जो कि पूरी तरह से गलत है।
क्योंकि इसका सीधा असर अभिभावकों की जेब पर पड़ता है और शिक्षा की असली गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। अब समय आ गया है कि सरकार इस ओर ध्यान दे और निजी स्कूलों के लिए आदेश जारी करे कि या तो वे किताबों की कीमतों को कम करें, या फिर केवल एनसीईआरटी की किताबें ही स्कूलों में पढ़ाई जाएँ, ताकि अभिभावक इन्हें कहीं से भी खरीद सकें।
शिक्षा या धंधा के इस विषय को और भी बारीकी से जानने के लिए नीचे दी गई वीडियो को ध्यानपूर्वक देखें।
सरकारी प्रयास और अभिभावकों की उम्मीदें
भारत के सभी अभिभावकों को बता दें कि एनसीईआरटी किताबों की कीमतें सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं और सभी सरकारी विद्यालयों में इन्हीं किताबों से पढ़ाई कराना अनिवार्य है। लेकिन बहुत से निजी स्कूलों में यह किताबें नहीं पढ़ाई जातीं।
अब भारत सरकार को एक ठोस कदम उठाना चाहिए कि चाहे स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट, किताबों की देखरेख और उनकी कीमतें सरकार ही तय करे, ताकि निजी स्कूलों की मनमानी को रोका जा सके।
आज देशभर के कई अभिभावक लगातार इस समस्या को उठा रहे हैं। उनकी मांग है कि निजी स्कूलों में भी एनसीईआरटी किताबों का ही उपयोग किया जाए, और यदि कोई अतिरिक्त पुस्तक शामिल की जाए, तो उसकी कीमत सरकार तय करे — न कि कोई निजी स्कूल। क्योंकि यह बच्चों के भविष्य का सवाल है और अभिभावकों के लिए चिंता का विषय।
निष्कर्ष
शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान को फैलाना है, न कि मुनाफा कमाना। जब नर्सरी कक्षा की किताबें ही ₹4500 रुपये में मिलने लग जाएँ, तो यह हमारे शिक्षा तंत्र की एक बड़ी विफलता है। अब समय आ गया है कि भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय और समाज मिलकर इस मुद्दे पर ठोस कार्रवाई करें, ताकि शिक्षा हर बच्चे तक समान रूप से पहुंचे — न कि अभिभावकों का जेब खर्च बढ़ाए। धन्यवाद!
सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सभी बच्चों को मिलनी चाहिए, क्योंकि यह उनका अधिकार है।
V.S. Chandravashi, SuperThirty Content Writer and Editor